'आदमी'
जिस 'आदमी' ने अपनी ईमानदारी की खातिर अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर समाज और देश के लिए कुछ करना चाहा।
जिस 'आदमी' ने बिना किसी लाठी-डंडे और तलवार के गांधीवादी तरीके पर चलकर कांग्रेस की नाक में दम कर दिया।
सिर्फ नाक में 'दम' ही नहीं किया बल्कि कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी का भी दिल्ली में 'दम' निकाल दिया।
जिस 'आदमी' पर न कांग्रेस और न ही बीजेपी किसी तरह के भ्रष्टाचार और दुराचार के आरोप साबित नहीं कर पाईं।
जिस 'आदमी' ने अपने संघर्ष, अपने जुझारूपन, अपनी लगन, मेहनत, ईमानदारी और सबसे बड़ी बात सत्यनिष्ठा के साथ दृढ़ता ने 127 साल पुरानी कांग्रेस और 35 साल पुरानी बीजेपी को देश की राजधानी में बेचारी पार्टी बना दिया।
जिस आदमी ने अपने संघर्ष के दिनों से लेकर दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने तक कभी न अपना रहने का स्टाइल बदला और न ही अपने कपड़े बदले,...
उस 'आदमी' की चुनी हुई सरकार को नहीं चलने देने की साजिश, खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बताने वाली बीजेपी कर रही है। सिर्फ साज़िश ही नहीं कर रही है, बल्कि बीजेपी के 'वन मैन शो' बन चुके माननीय पीएम नरेन्द्र मोदी उस 'आदमी' को अपने से कमतर समझकर बात करने से भी कतरा रहे हैं।
और ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि जेपी आंदोलन के बाद देश में जितनी भी पार्टियां बनीं उन्होंने कभी भी दिल्ली में इस तरह से सीटें कभी नहीं जीती। यहां तक कि खुद बीजेपी के लिए पिछले 17 सालों से दिल्ली दरबार शेखचिल्ली का ख्वाब बना हुआ है।
अब इसे तथाकथित दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के नेताओं की झुंझलाहट कहें या फिर उस 'आदमी' की ईमानदारी और मजबूत इरादों के आगे खुद को बौना पा रहे हिंदुत्व के झंडाबरदारों का बचकानापन।
तरस आता है उन एलजी महोदय पर जो शीला के जमाने से लेकर जहां भी रहे, कभी मुंह नहीं खोल पाए। एलजी बनने से पहले किसी ने जिनका नाम तक नहीं सुना, एकाएक उनको अपने संवैधानिक अधिकार और कर्तव्य याद आ गए। अरे भाई, संविधान में जब साफ-साफ लिखा है कि किसी भी राज्य की चुनी हुई सरकार और उसकी मंत्रिपरिषद की सलाह पर राज्यपाल काम करेंगे। तो फिर नियुक्ति और तबादलों का अधिकार उपराज्यपाल के पास कैसे पहुंच गया। चलो छोड़ो ये कोर्ट, वकील और संविधान विशेषज्ञों का टेक्निकल मामला है वो सुलझ लेंगे।
हम बात कर रहे हैं उस 'आदमी' की, जिसने जाड़े से बचने के लिए कान पर 'मफलर' बांधा तो बड़ी पार्टियों के छोटे नेताओं ने उसे मंकी मैन, मफलरछाप और न जाने क्या-क्या कहकर संबोधित करना शुरु कर दिया।
अरे भाई, हम आपसे पूछते हैं, बड़ी पार्टी के छोटे नेताओं में से आप लोग कितने ऐसे लोग हैं जिन्होंने समाज और देश के लिए अपनी सरकारी नौकरी कुर्बान की हो। कितने ऐसे लोग हैं जो IRS जैसी सेवा के लिए चुने गए हों, फिर भी समाज के लिए नौकरी छोड़ी हो....आप में से कितने ऐसे हैं जिनका विधायक, मंत्री या सांसद बनने के बाद स्टाइल न बदला हो,....हो तो ये रहा है कि रातों-रात बड़ी पार्टी के छोटे नेताओं की तिजोरियां भर गईं। कल तक जिनके घरों में फाके पड़ते थे, वो अब अरबपति हो गए.....कितने ऐसे नेता हैं, जिन्होंने किसी स्टेट का मुख्यमंत्री बनने के बाद नई गाड़ी तक न खरीदी हो....अरे बात तो आप लोग महामना मालवीय, दीन दयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आदर्शों पर चलने की करते हैं,,,,लेकिन क्या हकीकत में ऐसा है,,,,दूसरे पर उंगली उछाल रहे है....पहले ये तो देख लो कि आपके दामन पर कितने दाग हैं। अफसोस हो रहा है कि हमने उस आदमी को वोट दिया, जो खुद को कभी सादा कपड़ों में दिखाता था, खुद को ज़मीन से जुड़ा चाय बेचने वाला बताता था। लेकिन अफसोस लुटियंस जोन के सिंहासन पर बैठते ही सब भूल गए। कपड़े बदल गए, कपड़े पहनने का स्टाइल बदल गया,,.,.कुर्ता जैकेट लाखों के सूट-बूट में बदल गया....और ज़मीन बातें कोरी बकवास बन गईं। फेंकोलॉजी और हांकालॉजी की अगर कोई ड्रिग्री होती तो सबसे पहला अवार्ड इसी आदमी को मिलता। भाई साहब ज़रा नीचे आइए..बहुत हवा में हो.....वक्त बदलने में देर नहीं लगती, और ये वही हिंदुस्तान है, जहां बड़े-बड़ों और बड़ी-बडियों की नाक जनता ने काट कर रख दी है।
जिस 'आदमी' ने अपनी ईमानदारी की खातिर अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर समाज और देश के लिए कुछ करना चाहा।
जिस 'आदमी' ने बिना किसी लाठी-डंडे और तलवार के गांधीवादी तरीके पर चलकर कांग्रेस की नाक में दम कर दिया।
सिर्फ नाक में 'दम' ही नहीं किया बल्कि कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी का भी दिल्ली में 'दम' निकाल दिया।
जिस 'आदमी' पर न कांग्रेस और न ही बीजेपी किसी तरह के भ्रष्टाचार और दुराचार के आरोप साबित नहीं कर पाईं।
जिस 'आदमी' ने अपने संघर्ष, अपने जुझारूपन, अपनी लगन, मेहनत, ईमानदारी और सबसे बड़ी बात सत्यनिष्ठा के साथ दृढ़ता ने 127 साल पुरानी कांग्रेस और 35 साल पुरानी बीजेपी को देश की राजधानी में बेचारी पार्टी बना दिया।
जिस आदमी ने अपने संघर्ष के दिनों से लेकर दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने तक कभी न अपना रहने का स्टाइल बदला और न ही अपने कपड़े बदले,...
उस 'आदमी' की चुनी हुई सरकार को नहीं चलने देने की साजिश, खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बताने वाली बीजेपी कर रही है। सिर्फ साज़िश ही नहीं कर रही है, बल्कि बीजेपी के 'वन मैन शो' बन चुके माननीय पीएम नरेन्द्र मोदी उस 'आदमी' को अपने से कमतर समझकर बात करने से भी कतरा रहे हैं।
और ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि जेपी आंदोलन के बाद देश में जितनी भी पार्टियां बनीं उन्होंने कभी भी दिल्ली में इस तरह से सीटें कभी नहीं जीती। यहां तक कि खुद बीजेपी के लिए पिछले 17 सालों से दिल्ली दरबार शेखचिल्ली का ख्वाब बना हुआ है।
अब इसे तथाकथित दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के नेताओं की झुंझलाहट कहें या फिर उस 'आदमी' की ईमानदारी और मजबूत इरादों के आगे खुद को बौना पा रहे हिंदुत्व के झंडाबरदारों का बचकानापन।
तरस आता है उन एलजी महोदय पर जो शीला के जमाने से लेकर जहां भी रहे, कभी मुंह नहीं खोल पाए। एलजी बनने से पहले किसी ने जिनका नाम तक नहीं सुना, एकाएक उनको अपने संवैधानिक अधिकार और कर्तव्य याद आ गए। अरे भाई, संविधान में जब साफ-साफ लिखा है कि किसी भी राज्य की चुनी हुई सरकार और उसकी मंत्रिपरिषद की सलाह पर राज्यपाल काम करेंगे। तो फिर नियुक्ति और तबादलों का अधिकार उपराज्यपाल के पास कैसे पहुंच गया। चलो छोड़ो ये कोर्ट, वकील और संविधान विशेषज्ञों का टेक्निकल मामला है वो सुलझ लेंगे।
हम बात कर रहे हैं उस 'आदमी' की, जिसने जाड़े से बचने के लिए कान पर 'मफलर' बांधा तो बड़ी पार्टियों के छोटे नेताओं ने उसे मंकी मैन, मफलरछाप और न जाने क्या-क्या कहकर संबोधित करना शुरु कर दिया।
अरे भाई, हम आपसे पूछते हैं, बड़ी पार्टी के छोटे नेताओं में से आप लोग कितने ऐसे लोग हैं जिन्होंने समाज और देश के लिए अपनी सरकारी नौकरी कुर्बान की हो। कितने ऐसे लोग हैं जो IRS जैसी सेवा के लिए चुने गए हों, फिर भी समाज के लिए नौकरी छोड़ी हो....आप में से कितने ऐसे हैं जिनका विधायक, मंत्री या सांसद बनने के बाद स्टाइल न बदला हो,....हो तो ये रहा है कि रातों-रात बड़ी पार्टी के छोटे नेताओं की तिजोरियां भर गईं। कल तक जिनके घरों में फाके पड़ते थे, वो अब अरबपति हो गए.....कितने ऐसे नेता हैं, जिन्होंने किसी स्टेट का मुख्यमंत्री बनने के बाद नई गाड़ी तक न खरीदी हो....अरे बात तो आप लोग महामना मालवीय, दीन दयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आदर्शों पर चलने की करते हैं,,,,लेकिन क्या हकीकत में ऐसा है,,,,दूसरे पर उंगली उछाल रहे है....पहले ये तो देख लो कि आपके दामन पर कितने दाग हैं। अफसोस हो रहा है कि हमने उस आदमी को वोट दिया, जो खुद को कभी सादा कपड़ों में दिखाता था, खुद को ज़मीन से जुड़ा चाय बेचने वाला बताता था। लेकिन अफसोस लुटियंस जोन के सिंहासन पर बैठते ही सब भूल गए। कपड़े बदल गए, कपड़े पहनने का स्टाइल बदल गया,,.,.कुर्ता जैकेट लाखों के सूट-बूट में बदल गया....और ज़मीन बातें कोरी बकवास बन गईं। फेंकोलॉजी और हांकालॉजी की अगर कोई ड्रिग्री होती तो सबसे पहला अवार्ड इसी आदमी को मिलता। भाई साहब ज़रा नीचे आइए..बहुत हवा में हो.....वक्त बदलने में देर नहीं लगती, और ये वही हिंदुस्तान है, जहां बड़े-बड़ों और बड़ी-बडियों की नाक जनता ने काट कर रख दी है।