शनिवार, 28 मार्च 2009

क्यों मिटे भारत से पोलियो.....

(कटाक्ष)
....बहुत हो गया। दो बूंद पिलाओ....पोलियो मिटाओ का नारा.....आखिर क्यों पिलाएं हम दो बूंद...क्यों मिटाएं पोलियो। अगर पोलियो मिट गया, तो भारत का दुनिया में (बद) नाम कैसे होगा॥? हम तो नहीं मिटाते पोलियो, आप चीखते रहिए - चिल्लाते रहिए। नहीं मिटेगा पोलियो। किसी गरीब का बेटा -बेटी पूरी ज़िंदगी ज़मीन पर घिसट-घिसट कर -रगड़ -रगड़ कर काट दे। हमें उससे क्या फर्क पड़ता है। पोलियो अगर मिट गया, तो हर साल केन्द्र से करोड़ों रूपये पोलियो मिटाने के नाम पर कैसे मिलेंगे। पिछले ५ साल में पोलियो मिटाने के लिए जो पैसा केन्द्र से मंजूर हुआ, उसको कहां लगाया, उसका हिसाब क्यों दें हम आपको। दें भी तो दें क्यों, कोई हिसाब मांगता जो नहीं है। यूनिसेफ की ओर से भी करोड़ों रूपये पोलियो मिटाने पर आते हैं। जब इतनी भारी लक्ष्मी देवी पोलियो के नाम पर मिल रही है। तो हम क्यों मिटाएं पोलियो। पोलियो मिट गया तो जेब भरने का श्रोत बंद नहीं हो जाएगा। हम तो नहीं मिटाते पोलियो॥? आप चीखते रहिए-चिल्लाते रहिए। पूरी दुनिया में पोलियो मिट रहा है, पोलियो का एच वन बी वायरस दम तोड़ रहा है, लेकिन अगर हमारे भारत में वायरस ने दम तोड़ दिया, तो हम पोलियो ग्रस्त देश के नागरिक होने का खिताब अपने नाम कैसे कर पाएंगे। हम तो नहीं मिटाते पोलियो।
एक बार लगा था भारत से पोलियो मिट जाएगा, मर जाएगा, वायरस का नामों-निशान मिट जाएगा, लेकिन हमने यूपी और बिहार में उसे ज़िंदा कर दिया। यूनीसेफ की रिपोर्ट देखिए। पोलियो के सबसे ज्यादा नए मामले भारत में सामने आए हैं। इसमें भी यूपी पहले नंबर पर आया। पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिले इसमें अव्वल स्थान पाते हैं। ५ साल तक टाइम टू टाइम लगातार पोलियो की दवा पिलाई गई, लेकिन फिर भी पोलियो ज़िंदा रहा। ये हुई ना बात। (बद) नाम कमाने में हमने बाजी मार ली। खुश हो जाइए। पोलियो का वायरस ज़िंदा रखने वाले देश के नागरिक होने का आपको गौरव मिल गया है। कुछ और भी लोग हैं जो पोलियो की दवा को जादुई दवा समझते हैं। ऐसे राष्ट्रवादियों का तर्क है कि दवा पीने से बच्चा नपुंसक हो जाएगा। बच्चा अभी अपने पैरों पर ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ है कि इन राष्ट्रवादियों बच्चे को नपुंसक ओर पुंसक होने की चिंता सता रही है। लेकिन इन्हें ये डर नहीं सता रहा कि दवा नहीं पिलाई तो लकवा मार जाएगा। फिर क्या करोगे उस पुंसकता का। जब पूरी ज़िंदगी बच्चा या बच्ची ज़मीन पर घिसट-घिसटकर काटेगा। तब एक और रिकॉर्ड बनेगा। लकवापीड़ित देश के नागरिक होने का। तो बनाते रहिए रिकॉर्ड और मत पिलाइये पोलियो की दवा। क्योंकि लोकतंत्र का महापर्व आ गया है, और वो लोग दो बूंद लेकर आपके घर फिर से आने वाले हैं। लेकिन ज़रा सोचिए, इन महानुभावों से एक बार बस इतना पूछ लीजिए कि क्या उनका कोई बेटा-बेटी या रिश्तेदार ऐसा है। जिसने पोलियो की दवा नहीं पी है, या नहीं पिलाई है। फिर आपके गांव,ढ़ाणी और घर तक पोलियो की दवा क्यों नहीं पहुंची। अगर पहुंची भी तो आपने क्यों नहीं पिलाई। फिर अपनी अन्तरात्मा से पूछना कि पोलियो की दवा नहीं पिलाकर आपने कौन सा तीर मार लिया ? और क्या आपको तीसमार खां की पदवी मिली।

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

ताल से ताल मिलाते चलो....जनता को बेवकूफ बनाते चलो

लोकसभा चुनाव का महापर्व आ गया है, बड़े-बड़े शूरमा मैदान में उतरने के लिए दिमागी और जुबानी कसरत कर रहे हैं। जो जितने झूठ और शातिराना बयान बोलेगा उसके लोकतंत्र का देवता बनने के उतने ही ज्यादा अवसर होंगे। इन्द्र देव की सभा सरीखी संसद में पूरे ५४३ देवता ५ साल के लिए विराजमान होते हैं। इसलिए देवगण आजकल गाना गा रहे हैं, ताल से ताल मिलाते चलो....जनता को बेवकूफ बनाते चलो। अब इसके लिए भले ही अपने पुराने वादों को भुलाना पड़े या फिर सिद्धांतों से समझौता करना पड़े। यहां तक कि छाती ठोक-ठोक कर बोले गए अपने बोलों को वापस अपने मुंह में लेना पड़े। लोकतंत्र के महापर्व से पहले यही तो हो रहा है। लालू, मुलायम और पासवान हाथों में हाथ डालकर सोनू निगम का गाना गा रहे हैं....वो पहली बार जब हम मिले,,,हाथों में हाथ जब हमे चले....हो गया ये दिल दीवाना...होती है क्या सत्ता हमने जाना......। इधर अम्मा को फूटी आंखों नहीं सुहाने वाली पीएमके ने जयललिता की उंगली पकड़ ली। बच गए मनमोहन और सोनिया दोनों मिलकर इंग्लिश स्टाईल में टू-टू जा फोर, टू-टू जा थ्री, का गुणा भाग करके २७२ को जोड़ करने में जुटे हैं। आडवाणीजी आरएसएस...आरएसएस करते हुए वरूण वरूण कहने लगे हैं। आखिर इन्द्रसभा में एक देवता का नाम वरूण देव भी तो था। वो वरूण देव भी कम उम्र के थे....और ये वरूण भी २९ साल का नौजवान है। इन्द्रसभा की महारानी बनने के लिए मायावती हाथी पर चढ़कर हुंकार लगा रही है, लेकिन लाल लाल चिल्लाने वाले लाल झंडे के पीछे छुपकर ललचाई नज़रों से महापर्व के बाद होने वाली भेंट पर नज़र गड़ाए हुए हैं। लेकिन इन सब के बीच उन देवगणों की याद भी आती है, जो इस महापर्व में दिखाई नहीं देने वाले हैं। कोई बीमारी के कारण, तो कोई अपने रिटायरमेंट के कारण, किसी के आड़े बढ़ती उम्र आगे आ गई है तो किसी ने बेटे-बेटी यो पोते-पोती के लिए कुर्बानी दे दी है। मगर इसके बावजूद भी उनके दिल गैंदाफूल की तरह खिल रहे हैं, और यही कह रहे हैं ताल से ताल मिलाते चलो, लोकतंत्र का महापर्व है,...जनता को बेवकूफ बनाते चलो।

शनिवार, 7 मार्च 2009

भारतीय जनता पार्टी

भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 1980 में की गई। इससे पहले 1977 से 1979 तक इसे जनता पार्टी के साथ के भारतीय जन संघ और उससे पहले 1951 से 1977 तक भारतीय जन संघ के नाम से जाना जाता रहा है। भाजपा हिंदुत्व की अवधारणा को लेकर चलने वाले राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ या आरएसएस की सबसे प्रमुख राजनीतिक इकाई है. यही वजह है कि भाजपा पर एक सांप्रदायिक पार्टी होने का आरोप लगता रहा है. अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना, जम्मू-कश्मीर को विशेष स्थान देने वाली संविधान की धारा 370 की समाप्ति और समान नागरिक संहिता लागू करने जैसे
विवादास्पद मुद्दों को लेकर पार्टी की आलोचना की जाती रही है.भारतीय जनता पार्टी के इतिहास को तीन अलग-अलग हिस्सों में बांटा जा सकता है.भारतीय जन संघभारतीय जन संघ की स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में की थी. पार्टी को पहले आम चुनाव में कोई ख़ास सफलता नहीं मिली. लेकिन इसे अपनी पहचान स्थापित करने में कामयाबी ज़रुर हासिल हुई. भारतीय जन संघ ने शुरु से ही कश्मीर की एकता, गौ रक्षा, ज़मींदारी प्रथा और परमिट-लाइसेंस-कोटा राज ख़त्म करने जैसे मुद्दों पर ज़ोर दिया.

मंडल आंदोलन के दौरान भाजपा का आधार बढ़ा
कांग्रेस का विरोध करते हुए जन संघ ने राज्यों में अपना संगठन फैलाने और उसे मज़बूत करने का काम शुरु किया. लेकिन चुनावों में पार्टी को आशातीत सफलता नहीं मिली.कांग्रेस का विरोध करने के लिए जन संघ ने जयप्रकाश नारायण (जेपी) का समर्थन भी किया. जेपी ने इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ नारा दिया "सिंहासन हटाओ की जनता आती है."1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की. इस दौरान दूसरी विपक्षी पार्टियों की तरह जन संघ के भी हज़ारों कार्यकर्ताओं और नेताओं को जेल में डाला गया.जनता पार्टी1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस की हार हुई. मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और भारतीय जन संघ के अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री और लालकृष्ण आडवाणी को सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया.लेकिन आपसी गुटबाज़ी और लड़ाई की वजह से ये सरकार 30 महीनों में ही गिर गई. भारतीय जनता पार्टी1980 के चुनावों में विभाजित जनता पार्टी की हार हुई. भारतीय जन संघ जनता पार्टी से अलगा हुआ और इसने अपना नाम बदल कर भारतीय जनता पार्टी रख लिया. अटल बिहारी वाजपेयी पार्टी के अध्यक्ष बने.दिसंबर 1980 में मुंबई में भारतीय जनता पार्टी का पहला अधिवेशन हुआ. भाजपा ने कांग्रेस के अपने विरोध को जारी रखा और पंजाब और श्रीलंका को लेकर इंदिरा गांधी सरकार की आलोचना की. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए आम चुनावों में उनके पुत्र राजीव गांधी को तीन-चौथाई बहुमत मिला. इस आम चुनाव में भाजपा को सिर्फ़ दो सीटें मिलीं. ये बीजेपी के लिए एक बहुत बड़ा झटका था.पार्टी ने इस झटके से उबरने के प्रयास शुरु कर दिए. चौरासी के आम चुनावों के नतीजों का विश्लेषण किया. चुनाव सुधारों की वक़ालत की. बंगलादेश से आ रहे घुसपैठियों की समस्या को उठाया. भाजपा ने बोफ़ोर्स तोप सौदे को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को घेरा.1989 के चुनावों में भाजपा ने विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल से सीटों का तालमेल किया. इन चुनावों में भाजपा ने लोकसभा में अपने सदस्यों की संख्या 1984 में दो से बढ़ाकर 89 तक पहुंचाई.विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार को भाजपा ने बाहर से बिना शर्त समर्थन दिया. बाद में पार्टी नेताओं ने अपने इस फ़ैसले को अनुचित भी ठहराया.मंडल से कमंडलविश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़ी जातियों और जनजातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए मंडल आयोग की सिफ़ारिशें लागू कीं. भाजपा को लगा कि वे अपना वोट बैंक खड़ा करना चाहते हैं.
राम मंदिर निर्माण का विषय शुरु से विवादास्पद रहा है
अब भाजपा ने हिंदुत्व के मुद्दे को दोबारा उठाया. पार्टी ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाने की बात कही. कहा गया भाजपा ने "मंडल" का जवाब "कमंडल" से दिया.यानी हिंदू वोट बैंक को इकठ्ठा रखने की कोशिश जिसके मंडल रिपोर्ट आने के बाद बँट जाने का ख़तरा पैदा हो गया था. पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा आयोजित की. उनकी गिरफ़्तारी के बाद भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद 1991 में हुए चुनावों में प्रचार के दौरान ही राजीव गांधी की हत्या हो गई. भाजपा को इन चुनावों में 119 सीटों पर विजय मिली. इसका बड़ा श्रेय अयोध्या मुद्दे को जाता है.कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला लेकिन पीवी नरसिंहराव अल्पमत की सरकार चलाते रहे. भाजपा ने सरकार का विरोध जारी रखा. शेयर घोटाले और आर्थिक उदारीकरण को लेकर उसने सरकार को घेरा.सत्ता1996 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभरी. राष्ट्रपति डॉक्टर शंकरदयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए बुलाया. लेकिन लोकसभा में बहुमत न साबित कर पाने की वजह से उनकी सरकार सिर्फ़ 13 दिन में गिर गई.बाद में कांग्रेस के बाहरी समर्थन से बनीं एचडी देवेगौडा और इंदर कुमार गुजराल सरकारें भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाईं. 1998 में एक बार फिर आम चुनाव हुए.इन चुनावों में भाजपा ने क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन और सीटों का तालेमल किया. ख़ुद पार्टी को 181 सीटों पर जीत हासिल हुई. अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने.लेकिन गठबंधन की एक प्रमुख सहयोगी जयललिता की एआईएडीएमके के समर्थन वापस लेने से वाजपेयी सरकार गिर गई. 1999 में एक बार फिर आम चुनाव हुए.इन चुनावों को भाजपा ने 23 सहयोगी पार्टियों के साथ साझा घोषणापत्र पर लड़ा और गठबंधन को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का नाम दिया गया. एनडीए को बहुमत मिला. अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने. वे एक मायने में पहले ग़ैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं.

भारतीय जनता पार्टी

भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 1980 में की गई। इससे पहले 1977 से 1979 तक इसे जनता पार्टी के साथ के भारतीय जन संघ और उससे पहले 1951 से 1977 तक भारतीय जन संघ के नाम से जाना जाता रहा है। भाजपा हिंदुत्व की अवधारणा को लेकर चलने वाले राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ या आरएसएस की सबसे प्रमुख राजनीतिक इकाई है. यही वजह है कि भाजपा पर एक सांप्रदायिक पार्टी होने का आरोप लगता रहा है. अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना, जम्मू-कश्मीर को विशेष स्थान देने वाली संविधान की धारा 370 की समाप्ति और समान नागरिक संहिता लागू करने जैसे
विवादास्पद मुद्दों को लेकर पार्टी की आलोचना की जाती रही है.भारतीय जनता पार्टी के इतिहास को तीन अलग-अलग हिस्सों में बांटा जा सकता है.भारतीय जन संघभारतीय जन संघ की स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में की थी. पार्टी को पहले आम चुनाव में कोई ख़ास सफलता नहीं मिली. लेकिन इसे अपनी पहचान स्थापित करने में कामयाबी ज़रुर हासिल हुई. भारतीय जन संघ ने शुरु से ही कश्मीर की एकता, गौ रक्षा, ज़मींदारी प्रथा और परमिट-लाइसेंस-कोटा राज ख़त्म करने जैसे मुद्दों पर ज़ोर दिया.

मंडल आंदोलन के दौरान भाजपा का आधार बढ़ा
कांग्रेस का विरोध करते हुए जन संघ ने राज्यों में अपना संगठन फैलाने और उसे मज़बूत करने का काम शुरु किया. लेकिन चुनावों में पार्टी को आशातीत सफलता नहीं मिली.कांग्रेस का विरोध करने के लिए जन संघ ने जयप्रकाश नारायण (जेपी) का समर्थन भी किया. जेपी ने इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ नारा दिया "सिंहासन हटाओ की जनता आती है."1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की. इस दौरान दूसरी विपक्षी पार्टियों की तरह जन संघ के भी हज़ारों कार्यकर्ताओं और नेताओं को जेल में डाला गया.जनता पार्टी1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस की हार हुई. मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और भारतीय जन संघ के अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री और लालकृष्ण आडवाणी को सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया.लेकिन आपसी गुटबाज़ी और लड़ाई की वजह से ये सरकार 30 महीनों में ही गिर गई. भारतीय जनता पार्टी1980 के चुनावों में विभाजित जनता पार्टी की हार हुई. भारतीय जन संघ जनता पार्टी से अलगा हुआ और इसने अपना नाम बदल कर भारतीय जनता पार्टी रख लिया. अटल बिहारी वाजपेयी पार्टी के अध्यक्ष बने.दिसंबर 1980 में मुंबई में भारतीय जनता पार्टी का पहला अधिवेशन हुआ. भाजपा ने कांग्रेस के अपने विरोध को जारी रखा और पंजाब और श्रीलंका को लेकर इंदिरा गांधी सरकार की आलोचना की. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए आम चुनावों में उनके पुत्र राजीव गांधी को तीन-चौथाई बहुमत मिला. इस आम चुनाव में भाजपा को सिर्फ़ दो सीटें मिलीं. ये बीजेपी के लिए एक बहुत बड़ा झटका था.पार्टी ने इस झटके से उबरने के प्रयास शुरु कर दिए. चौरासी के आम चुनावों के नतीजों का विश्लेषण किया. चुनाव सुधारों की वक़ालत की. बंगलादेश से आ रहे घुसपैठियों की समस्या को उठाया. भाजपा ने बोफ़ोर्स तोप सौदे को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को घेरा.1989 के चुनावों में भाजपा ने विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल से सीटों का तालमेल किया. इन चुनावों में भाजपा ने लोकसभा में अपने सदस्यों की संख्या 1984 में दो से बढ़ाकर 89 तक पहुंचाई.विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार को भाजपा ने बाहर से बिना शर्त समर्थन दिया. बाद में पार्टी नेताओं ने अपने इस फ़ैसले को अनुचित भी ठहराया.मंडल से कमंडलविश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़ी जातियों और जनजातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए मंडल आयोग की सिफ़ारिशें लागू कीं. भाजपा को लगा कि वे अपना वोट बैंक खड़ा करना चाहते हैं.
राम मंदिर निर्माण का विषय शुरु से विवादास्पद रहा है
अब भाजपा ने हिंदुत्व के मुद्दे को दोबारा उठाया. पार्टी ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाने की बात कही. कहा गया भाजपा ने "मंडल" का जवाब "कमंडल" से दिया.यानी हिंदू वोट बैंक को इकठ्ठा रखने की कोशिश जिसके मंडल रिपोर्ट आने के बाद बँट जाने का ख़तरा पैदा हो गया था. पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा आयोजित की. उनकी गिरफ़्तारी के बाद भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद 1991 में हुए चुनावों में प्रचार के दौरान ही राजीव गांधी की हत्या हो गई. भाजपा को इन चुनावों में 119 सीटों पर विजय मिली. इसका बड़ा श्रेय अयोध्या मुद्दे को जाता है.कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला लेकिन पीवी नरसिंहराव अल्पमत की सरकार चलाते रहे. भाजपा ने सरकार का विरोध जारी रखा. शेयर घोटाले और आर्थिक उदारीकरण को लेकर उसने सरकार को घेरा.सत्ता1996 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभरी. राष्ट्रपति डॉक्टर शंकरदयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए बुलाया. लेकिन लोकसभा में बहुमत न साबित कर पाने की वजह से उनकी सरकार सिर्फ़ 13 दिन में गिर गई.बाद में कांग्रेस के बाहरी समर्थन से बनीं एचडी देवेगौडा और इंदर कुमार गुजराल सरकारें भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाईं. 1998 में एक बार फिर आम चुनाव हुए.इन चुनावों में भाजपा ने क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन और सीटों का तालेमल किया. ख़ुद पार्टी को 181 सीटों पर जीत हासिल हुई. अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने.लेकिन गठबंधन की एक प्रमुख सहयोगी जयललिता की एआईएडीएमके के समर्थन वापस लेने से वाजपेयी सरकार गिर गई. 1999 में एक बार फिर आम चुनाव हुए.इन चुनावों को भाजपा ने 23 सहयोगी पार्टियों के साथ साझा घोषणापत्र पर लड़ा और गठबंधन को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का नाम दिया गया. एनडीए को बहुमत मिला. अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने. वे एक मायने में पहले ग़ैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं.