मंगलवार, 18 मई 2010

मुझे अभी तो जीने दो

दो घूंट ख़ुशी के पीने दो!!
आसमान है बदला-बदला ,
काले बादल ने धूप को निगला,
बारिश की बूंदों में जरा,
मुझे अभी तो भीगने दो!
मुझे अभी तो जीने दो!!

खामोश सर्द रातों में,
दादी-मां की प्यारी बातों में,
सात समन्दर पार सही,
एक सपना तो संजोने दो!
मुझे अभी तो जीने दो!!

गर्म झुलसाती हवाओं में,
सूखे पेड़ की छांव में,
नए मंजर निकल रहे जो,
उसे घड़ी भर देखने दो!
मुझे अभी तो जीने दो!!

उसकी रातों से रात गई है,
खुशियों की हर बात गई है,
रिश्तों के जज्बात गए हैं,
रहने दो इन्सान मुझे,
कोई चाक जिगर तो सीने दो!
मुझे अभी तो जीने दो!!

बच्चों ने जीना सिखलाया,
बुजुर्गों ने आइना दिखलाया,
दिल की पुकार भी है कुछ,
जरा खुद से भी तो समझने दो !
मुझे अभी तो जीने दो,
दो घूंट ख़ुशी के पीने दो !!

खंजर मार कर मुस्कुरा रहे हैं वो

ये कैसा आलम है
ये कैसा मंज़र है
किसी अपनों ने ही वार कर मारा खंज़र है!
खंजर मार कर मुस्कुरा रहे हैं वो
अपने दिए ज़ख़्मों से हमें छलनी किए जा रहे हैं वो !
ये कैसी दी उन्होंने हमें अपनी नफ़रत
कि हम उनकी नफ़रत को अपना बना रहे हैं
और अपनी हालत पर खुद भी मुस्कुरा रहे हैं
अपनी तबाही के मंज़र का आनंद उठा रहे हैं
हमारी ऐसी हालत देखकर वो डरे जा रहे हैं
और वो हैं कि अपने डर को छुपाने की
नाकाम कोशिश किए जा रहे हैं।।

अब ना हम होंगे

मेरी कलम मेरे अल्फाजों की
ये आखिरी सौगात है
अब ना हम होंगे
ना हमारी बातें
ना होंगी हसरतें
ना ही चाहतें
ना रुसवाइयां होंगी
ना आंखें होंगी नम
ना तुम रूठोगे
ना हम मनाएंगे
ना रातें करवटे लेते बीतेंगी
ना सुबह हताशा भरी होगी
अब जो होगा
वो मन में होगा
मन के कोने की हर किवाड़ अब बंद
ना खटखटाना इसे
क्योंकि इसकी कुंडी हमसे नहीं खुलेगी
बस ये ले लो
आखिरी अल्फाज
आखिरी सौगात
आखिर जज्बात
के साथ अलविदा..
मेरे दोस्तों
अलविदा मेरी मुस्कुराहट
अलविदा हर चाहत की आहट
अलविदा.. अलविदा।

शुक्रवार, 7 मई 2010

‘मैं जिंदा हूं...

मैं ज़िंदा हूं यह मुश्तहर कीजिए,
मेरे क़ातिलों को ख़बर कीजिए’।
दिल ही तो है न संगो-ख़िश्त,
दर्द से भर न आए क्यों,
रोएंगे हम हजार बार,
कोई हमें सताए क्यों।

दिल मिलने के भी नगमे होते हैं

टूटे दिलों के भी सपने होते हैं।
दिल मिलने के भी नगमे होते हैं।
गर कोई ग़म आए आपकी जिंदगी में,
हमें याद करना, क्योंकि अपने तो अपने होते हैं।

उनकी अदावत का अंदाज कुछ ऐसा है

उनकी अदावत का अंदाज कुछ ऐसा है।
जख्म देकर पूछते हैं अब हाल कैसा है।
किसी एक से हम गिला भी क्या करें,
सारी दुनिया का मिजाज ही कुछ ऐसा है।

रविवार, 2 मई 2010

जब बरसात मुझे भिगो रही थी..

जब बरसात मुझे भिगो रही थी
तुम साथ थे
जब सूरज मुझे जला रहा था
तुम साथ थे
जब चारों ओर घना अंधेरा था
तुम साथ थे
जब उजाला आखों को चुंधिया रहा था
तुम साथ थे
जिंदगी में जब जब तन्हा थे हम
तुम साथ थे
जब भीड़ में थे, तब भी
तुम साथ थे
फिर आज क्या हुआ
कैसे तुम किसी और के साथ हो गए
दामन छोड़ने का क्या कुछ अफसोस था
ये साथ तो जन्मों का था
फिर चंद कदमों पर
क्यों ये फासले हुए
जिंदगी की पगडंडी थे हम
फिर मंजिल कोई और
कैसे बनी
बोलो ना
हमसाया से साया बनने का वादा था
फिर आज ये साया
किसी और की
परछाई कैसे बना
बोलो ना ..
तुम तो मेरे साथ थे
फिर किसी और के
हमसाया, हमदम कैसे बने
बोलो ना...

रात फिर रो कर गुजार दी

आज सुबह का सूरज सफेद था
हवा भी थी खुशक बहुत
लगता है रात फिर रो कर गुजार दी उसने।।

उसने कभी नहीं कहा
उसे है शिकायत बहुत
उस तरफ से आती भीगी हवा
छुपे राज खोल गयी।।

जी तो सभी लेते हैं
चाहे टुकडों में मिले जिन्दगी
बहुत कम उन टुकडों को सीना जानते हैं।।

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

दिन रात बरसता बादल नहीं देखा

दिन रात बरसता बादल नहीं देखा
आखों की तरह कोई पागल नहीं देखा

क्यों लोग दुहाई देते हैं रिश्तों की
इस पेड़ पर हमने ने कभी फल नहीं देखा

इंसान दरिंदों की तरह घूमते हैं यहां
शहरों की तरह जंगल नहीं देखा

हम खुद उदासी में ही खुश रहते हैं
ख्वाबों में भी हमने कभी मखमल नहीं देखा

ज़रा बेरहम है मोहब्बत मेरी...

ये जिंदगी हर लम्हा मुझे तड़पाने लगी है
भूलने की कोशिश में वो और याद आने लगी है

उसे अपने दिल से मिटाऊं तो कैसे
जो धड़कन बनकर दिल धड़काने लगी है

सासों में उसी की महक आती है
वो हवाओं को खुशबू बन महकाने लगी है

ज़रा बेरहम है, मोहब्बत मेरी
होकर जुदा आज़माने लगी है

न जाने किस बात की सज़ा, दे रहा है ख़ुदा
इंतजार-ए-इश्क की हद आने लगी है

उसके बगैर ना जीना, ना तमन्ना जीने की
विरहा की अग्नि मुझे जलाने लगी है

हाल-ए-दिल कैसे करूं मैं बयां
जुदाई में जां मेरी जाने लगी है

तन्हाई मे अक्सर आती हैं उसकी सदाएं
वो शब्दों में ढलकर कविता बन जाने लगी है

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

थोड़ा और जी लूं...

थोड़ा और जी लूं
प्रेम की गागर मिले तो थोड़ा और जी लूं
स्नेह का सागर मिले तो ग़म को भी पी लूं

स्नेह सूरज ने दिया भरपूर है
चांदनी चाहे भले ही दूर है
तारा इक सुख का दिखे तो चैन से जी लूं
प्रेम की गागर मिले तो थोड़ा और जी लूं

धैर्यमय धरती ने धारा श्रेय से
प्रेममय अंबर ने पाला प्रेय से
शून्य भी गर दे सहारा वैर को भी पी लूं
प्रेम की गागर मिले तो थोड़ा और जी लूं

स्नेह की सरिता चली सागर जहां
प्रेम से पूरित किनारा है कहां
शांतिमय आंचल मिले तो शौर्य से जी लूं
प्रेम की गागर मिले तो थोड़ा और जी लूं

दोस्त क्या दोस्ती का सिला देंगे

दोस्त क्या दोस्ती का सिला देंगे
अब देंगे भी तो क्या , बस गिला देंगे।

एक झूठा - सा दिलासा दिए जाते हैं मुझको
जो मुरझा गये वो फूल कहां से खिला देंगे।

उम्र भर तो पहचान न सके मुझको
मरने पे मेरे कब्र पे दीया जला देंगे।

कुछ इस तरह रंजिश - सी हो गई है क्या कहिए ;
कि दें दवा भी तो लगे जहर पिला देंगे।

अब उनसे भी क्या पूछते हो मेरे दोस्तों का पता ;
रहे थे जो रक़ीब कभी , उन्हीं से मिला देंगे।

कर गुजरे हैं कुछ " नन्हे " काम ऐसा जमाने में ;
न रहा ख़ौफ़ कि मौत के फरिश्ते हमें सुला देंगे।

हुआ क्या आज ऐसा है ?

हुआ क्या आज ऐसा है
क्यों दिल बेचैन हो आया
नहीं है कोई बरसा मेघ
नहीं कोई तूफान आया

खबर तो जो पढ़ी थी प्रातः
वह भी दिलकश सुहानी थी
अचानक फिर हुआ है क्या
जो मन बेजार हो आया

सवेरे जब गये थे कलियां चुनने
दिल के बागां में
वहां कटा लगा ऐसा
कि दिल अपना पिघल आया

बताएं किसको कैसे अब
नहीं कोई जगह खाली
हुआ दीवाना इतना कोई
कि दिल अपना चढ़ा आया

बड़ी दुर्दन्य वेदी वो
जहां चढ़ते नहीं हैं जिस्म
था सब कुछ ज्ञात जब उसको
तो क्यों अरमा चढ़ा आया

किसी का नाम लेने से
नहीं वो अपना हो जाता
वही होता है अपना तो
वहां से जो लिखा लाया

कभी कुछ चीज़ें जीवन में
बिना मांगे ही मिल जातीं
कभी कुछ है नहीं मिलता
भले तू सिर कटा आया

अगर न फूल हों हासिल
तो खुश्बू से मज़ा ले तू
न होगा कुछ फराक जग में
जो तू प्यासा ही रह आया

खबर हमको है अच्छे से
न सरल होता है समझौता
मगर वो क्या करेगा दोस्त
जो सब कुछ हो बहा आया

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

तुम नहीं हो

तुम नहीं हो
पर अगर तुम होते
तो क्या बदल जाता ?
खामोश होठ
मुसकुराने लगते,
पर अगर
मेरे लब खामोश हैं तो
किसी का क्या जाता है।
तुम होते तो,
मेरी सुबह खुशनुमा होती ।
पर अगर सुबह बेमानी है
तो किसी का क्या जाता है ?
तुम होते तो
चांदनी की आहट भाती मुझे।
पर अगर
चांदनी सताती है मुझे
तो किसी का क्या जाता है ?
तुम होते तो
मैं रोज नए सपने सजाती।
पर अगर
मेरी आंखें सपनों से दूर हैं
तो किसी का क्या जाता है ?
तुम होते तो
जीने का अंदाज निराला होता।
पर अगर
हम जीते हैं
क्योंकि जिन्दा हैं
तो क्या किसी को
फर्क पड़ता है ?
तुम्हारे ना होने से
कुछ नहीं होता,
कुछ नहीं बदला,
तो फिर ये गुमान क्यों
किस बात का अभिमान
तुम्हारे होने ना होने के बीच
सिर्फ एक
मुस्कुराहट का ही तो फर्क है।
पर
इक बात कहें,
तुम नहीं हो तो
क्या हुआ
कुछ नहीं...
कुछ भी नहीं
और होते भी
तो क्या होता...

कितने साल बीत गए

कितने साल बीत गए खुद से बातें किए
पुकारते थे जो ख्वाब मेरे, कब से दिखाई न दिए
वह छाया कहीं खो गयी शब्द सब मौन हुए
राह क्यों भूलने लगे कदम बिन पिए हुए
झंझावात झेल गये थे, रात-दिन खेल गए थे
अब कहां से ढूंढ के लाएं लोहे वो तपते हुए
कितनी हल्की सी आशा है, शायद कोई किरण मिले
बुझता दीपक काली रातें, सुबह सब भूले हुए।।

सिर्फ एक कहानी हूं मैं

अगर रख सको तो एक निशानी हूं मैं
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूं मैं

रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया
वह एक बूंद आंख का पानी हूं मैं
सबको प्यार देने की आदत है हमें
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत हैं हमें
कितना भी गहरा जख्म दे कोई
उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूं मैं
सवालों से खफा छोटा सा जवाब हूं मैं
जो समझ न सके मुझे , उनके लिए "कौन"
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूं मैं
आंख से देखोगे तो खुशी पाओगे
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूं मैं
अगर रख सको तो निशानी , खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूं मैं।।

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

फूल मुझे पसंद नहीं

फूल मुझे पसंद नहीं,
मै कांटों का दीवाना हूं।
मैं जलने वाली आग नहीं,
जल जाने वाला परवाना हूं।

ख्वाब मुझे पसंद नहीं,
मैं हकीकत का आशियाना हूं।
मैं मिटने वाली हसरत नहीं,
जीने वाला अफसाना हूं।
मैं थमने वाला वक़्त नहीं,
न छू पाने वाला किनारा हूं।
मैं रुकने वाली सांस नहीं,
दिल में धड़कने वाला सहारा हूं।

दर्दे दिल थमता है कहां

उन की आंखों से जख्मों से, जो भर दे वो अक्सीर कहां?
मेरे लावारिस अश्कों को, जो थामे वो मनमीत कहां?
मेरे अंधियारे आंगन में, जो दीया जले तकदीर कहां?
मेरे तन्हा से आलम में, जो रंग भरे वो प्यार कहां?

आहें भर भर के हार गये, अब उनमें भी तासीर कहां?
जब नायक ही खलनायक हों, तब मिलता है इंसाफ़ कहां?
ख्वाबों के महल सब टूट गये, बेजान हुए अब जीएं कहां?
आंखों से अश्क हुए ओझल, पर दर्दे दिल थमता है कहां?

ये दुनिया जंगल पत्थर की, खिलना मुरझाना जाने कहां
शीशे का समझ कर जामे जिगर, यूं मय को पीया और बहक गया
हम टुकड़े-कड़े चुनते रहे, जो टूट गया सो टूट गया
गीत मिले ना साज रहे, हो मुग्ध मधुर संगीत कहां?

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

ज़िंदगी की तलाश में...




ज़िंदगी की तलाश में हम मौत के कितने पास आ गए


जब ये सोचा तो घबरा गए आ गए हम कहाँ

ज़िंदगी की तलाश में

हम थे ऐसे सफ़र पे चले जिसकी कोई भी मंज़िल नहीं

हमने सारी उम्र जो किया उसका कोई भी हासिल नहीं

एक ख़ुशी की तलाश में ये कितने ग़म हमको तड़पा गए

जब ये सोचा तो घबरा ...

सोचो हम कब इतने मजबूर थे जो न करना था वो कर गए

पीछे मुड़ के जो देखा ज़रा अपने हालात से डर गए

खुद के बारे में सोचें जो हम अपने आप से शरमा गए

जब ये सोचा तो घबरा ...

ज़िंदगी एक आह !

ज़िंदगी एक आह होती है


मौत उसकी पनाह होती है।



जुर्म जितने हुए है धरती पर

आसमाँ की निगाह होती है।







आदमी आदमी को छलता है

आदिमीयत गवाह होती है।







दिल्लगी तुम किसी को मत कीजो

ज़िंदगी तक तबाह होती है।







ऐब दूजे के मत बता मुझको

ऐसी बातें गुनाह होती है।







गहरा सागर है दिल का दरिया भी

कब कहीं उनकी थाह होती है।







मिट गई सारी चाहतें फिर भी
एक बस तेरी चाह होती है।