रविवार, 2 मई 2010

जब बरसात मुझे भिगो रही थी..

जब बरसात मुझे भिगो रही थी
तुम साथ थे
जब सूरज मुझे जला रहा था
तुम साथ थे
जब चारों ओर घना अंधेरा था
तुम साथ थे
जब उजाला आखों को चुंधिया रहा था
तुम साथ थे
जिंदगी में जब जब तन्हा थे हम
तुम साथ थे
जब भीड़ में थे, तब भी
तुम साथ थे
फिर आज क्या हुआ
कैसे तुम किसी और के साथ हो गए
दामन छोड़ने का क्या कुछ अफसोस था
ये साथ तो जन्मों का था
फिर चंद कदमों पर
क्यों ये फासले हुए
जिंदगी की पगडंडी थे हम
फिर मंजिल कोई और
कैसे बनी
बोलो ना
हमसाया से साया बनने का वादा था
फिर आज ये साया
किसी और की
परछाई कैसे बना
बोलो ना ..
तुम तो मेरे साथ थे
फिर किसी और के
हमसाया, हमदम कैसे बने
बोलो ना...

2 टिप्‍पणियां:

Shekhar Kumawat ने कहा…

BAHUT KHUB

BADHAI AAP KO IS KE LIYE

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव भरे हैं।