मंगलवार, 18 मई 2010

अब ना हम होंगे

मेरी कलम मेरे अल्फाजों की
ये आखिरी सौगात है
अब ना हम होंगे
ना हमारी बातें
ना होंगी हसरतें
ना ही चाहतें
ना रुसवाइयां होंगी
ना आंखें होंगी नम
ना तुम रूठोगे
ना हम मनाएंगे
ना रातें करवटे लेते बीतेंगी
ना सुबह हताशा भरी होगी
अब जो होगा
वो मन में होगा
मन के कोने की हर किवाड़ अब बंद
ना खटखटाना इसे
क्योंकि इसकी कुंडी हमसे नहीं खुलेगी
बस ये ले लो
आखिरी अल्फाज
आखिरी सौगात
आखिर जज्बात
के साथ अलविदा..
मेरे दोस्तों
अलविदा मेरी मुस्कुराहट
अलविदा हर चाहत की आहट
अलविदा.. अलविदा।

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