रविवार, 2 मई 2010

रात फिर रो कर गुजार दी

आज सुबह का सूरज सफेद था
हवा भी थी खुशक बहुत
लगता है रात फिर रो कर गुजार दी उसने।।

उसने कभी नहीं कहा
उसे है शिकायत बहुत
उस तरफ से आती भीगी हवा
छुपे राज खोल गयी।।

जी तो सभी लेते हैं
चाहे टुकडों में मिले जिन्दगी
बहुत कम उन टुकडों को सीना जानते हैं।।

1 टिप्पणी:

vandana gupta ने कहा…

वाह क्या बात कह दी………गज़ब कर दिया।