शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

दिन रात बरसता बादल नहीं देखा

दिन रात बरसता बादल नहीं देखा
आखों की तरह कोई पागल नहीं देखा

क्यों लोग दुहाई देते हैं रिश्तों की
इस पेड़ पर हमने ने कभी फल नहीं देखा

इंसान दरिंदों की तरह घूमते हैं यहां
शहरों की तरह जंगल नहीं देखा

हम खुद उदासी में ही खुश रहते हैं
ख्वाबों में भी हमने कभी मखमल नहीं देखा

3 टिप्‍पणियां:

Ra ने कहा…

एक सुन्दर रचना ...अच्छी प्रस्तुति के लिए ,,,बधाई स्वीकारे

http://athaah.blogspot.com/

दिलीप ने कहा…

bahut khoobsoorat rachna sirji...

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया है