बुधवार, 21 अप्रैल 2010

दोस्त क्या दोस्ती का सिला देंगे

दोस्त क्या दोस्ती का सिला देंगे
अब देंगे भी तो क्या , बस गिला देंगे।

एक झूठा - सा दिलासा दिए जाते हैं मुझको
जो मुरझा गये वो फूल कहां से खिला देंगे।

उम्र भर तो पहचान न सके मुझको
मरने पे मेरे कब्र पे दीया जला देंगे।

कुछ इस तरह रंजिश - सी हो गई है क्या कहिए ;
कि दें दवा भी तो लगे जहर पिला देंगे।

अब उनसे भी क्या पूछते हो मेरे दोस्तों का पता ;
रहे थे जो रक़ीब कभी , उन्हीं से मिला देंगे।

कर गुजरे हैं कुछ " नन्हे " काम ऐसा जमाने में ;
न रहा ख़ौफ़ कि मौत के फरिश्ते हमें सुला देंगे।

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