बुधवार, 21 अप्रैल 2010

हुआ क्या आज ऐसा है ?

हुआ क्या आज ऐसा है
क्यों दिल बेचैन हो आया
नहीं है कोई बरसा मेघ
नहीं कोई तूफान आया

खबर तो जो पढ़ी थी प्रातः
वह भी दिलकश सुहानी थी
अचानक फिर हुआ है क्या
जो मन बेजार हो आया

सवेरे जब गये थे कलियां चुनने
दिल के बागां में
वहां कटा लगा ऐसा
कि दिल अपना पिघल आया

बताएं किसको कैसे अब
नहीं कोई जगह खाली
हुआ दीवाना इतना कोई
कि दिल अपना चढ़ा आया

बड़ी दुर्दन्य वेदी वो
जहां चढ़ते नहीं हैं जिस्म
था सब कुछ ज्ञात जब उसको
तो क्यों अरमा चढ़ा आया

किसी का नाम लेने से
नहीं वो अपना हो जाता
वही होता है अपना तो
वहां से जो लिखा लाया

कभी कुछ चीज़ें जीवन में
बिना मांगे ही मिल जातीं
कभी कुछ है नहीं मिलता
भले तू सिर कटा आया

अगर न फूल हों हासिल
तो खुश्बू से मज़ा ले तू
न होगा कुछ फराक जग में
जो तू प्यासा ही रह आया

खबर हमको है अच्छे से
न सरल होता है समझौता
मगर वो क्या करेगा दोस्त
जो सब कुछ हो बहा आया

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.