मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

कितने साल बीत गए

कितने साल बीत गए खुद से बातें किए
पुकारते थे जो ख्वाब मेरे, कब से दिखाई न दिए
वह छाया कहीं खो गयी शब्द सब मौन हुए
राह क्यों भूलने लगे कदम बिन पिए हुए
झंझावात झेल गये थे, रात-दिन खेल गए थे
अब कहां से ढूंढ के लाएं लोहे वो तपते हुए
कितनी हल्की सी आशा है, शायद कोई किरण मिले
बुझता दीपक काली रातें, सुबह सब भूले हुए।।

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।