मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

तुम नहीं हो

तुम नहीं हो
पर अगर तुम होते
तो क्या बदल जाता ?
खामोश होठ
मुसकुराने लगते,
पर अगर
मेरे लब खामोश हैं तो
किसी का क्या जाता है।
तुम होते तो,
मेरी सुबह खुशनुमा होती ।
पर अगर सुबह बेमानी है
तो किसी का क्या जाता है ?
तुम होते तो
चांदनी की आहट भाती मुझे।
पर अगर
चांदनी सताती है मुझे
तो किसी का क्या जाता है ?
तुम होते तो
मैं रोज नए सपने सजाती।
पर अगर
मेरी आंखें सपनों से दूर हैं
तो किसी का क्या जाता है ?
तुम होते तो
जीने का अंदाज निराला होता।
पर अगर
हम जीते हैं
क्योंकि जिन्दा हैं
तो क्या किसी को
फर्क पड़ता है ?
तुम्हारे ना होने से
कुछ नहीं होता,
कुछ नहीं बदला,
तो फिर ये गुमान क्यों
किस बात का अभिमान
तुम्हारे होने ना होने के बीच
सिर्फ एक
मुस्कुराहट का ही तो फर्क है।
पर
इक बात कहें,
तुम नहीं हो तो
क्या हुआ
कुछ नहीं...
कुछ भी नहीं
और होते भी
तो क्या होता...

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

उम्दा भावपूर्ण.

Shekhar Kumawat ने कहा…

इक बात कहें,
तुम नहीं हो तो
क्या हुआ
कुछ नहीं...
कुछ भी नहीं
और होते भी
तो क्या होता...

bahut khub