मंगलवार, 18 मई 2010

खंजर मार कर मुस्कुरा रहे हैं वो

ये कैसा आलम है
ये कैसा मंज़र है
किसी अपनों ने ही वार कर मारा खंज़र है!
खंजर मार कर मुस्कुरा रहे हैं वो
अपने दिए ज़ख़्मों से हमें छलनी किए जा रहे हैं वो !
ये कैसी दी उन्होंने हमें अपनी नफ़रत
कि हम उनकी नफ़रत को अपना बना रहे हैं
और अपनी हालत पर खुद भी मुस्कुरा रहे हैं
अपनी तबाही के मंज़र का आनंद उठा रहे हैं
हमारी ऐसी हालत देखकर वो डरे जा रहे हैं
और वो हैं कि अपने डर को छुपाने की
नाकाम कोशिश किए जा रहे हैं।।

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