(कटाक्ष)
....बहुत हो गया। दो बूंद पिलाओ....पोलियो मिटाओ का नारा.....आखिर क्यों पिलाएं हम दो बूंद...क्यों मिटाएं पोलियो। अगर पोलियो मिट गया, तो भारत का दुनिया में (बद) नाम कैसे होगा॥? हम तो नहीं मिटाते पोलियो, आप चीखते रहिए - चिल्लाते रहिए। नहीं मिटेगा पोलियो। किसी गरीब का बेटा -बेटी पूरी ज़िंदगी ज़मीन पर घिसट-घिसट कर -रगड़ -रगड़ कर काट दे। हमें उससे क्या फर्क पड़ता है। पोलियो अगर मिट गया, तो हर साल केन्द्र से करोड़ों रूपये पोलियो मिटाने के नाम पर कैसे मिलेंगे। पिछले ५ साल में पोलियो मिटाने के लिए जो पैसा केन्द्र से मंजूर हुआ, उसको कहां लगाया, उसका हिसाब क्यों दें हम आपको। दें भी तो दें क्यों, कोई हिसाब मांगता जो नहीं है। यूनिसेफ की ओर से भी करोड़ों रूपये पोलियो मिटाने पर आते हैं। जब इतनी भारी लक्ष्मी देवी पोलियो के नाम पर मिल रही है। तो हम क्यों मिटाएं पोलियो। पोलियो मिट गया तो जेब भरने का श्रोत बंद नहीं हो जाएगा। हम तो नहीं मिटाते पोलियो॥? आप चीखते रहिए-चिल्लाते रहिए। पूरी दुनिया में पोलियो मिट रहा है, पोलियो का एच वन बी वायरस दम तोड़ रहा है, लेकिन अगर हमारे भारत में वायरस ने दम तोड़ दिया, तो हम पोलियो ग्रस्त देश के नागरिक होने का खिताब अपने नाम कैसे कर पाएंगे। हम तो नहीं मिटाते पोलियो।
एक बार लगा था भारत से पोलियो मिट जाएगा, मर जाएगा, वायरस का नामों-निशान मिट जाएगा, लेकिन हमने यूपी और बिहार में उसे ज़िंदा कर दिया। यूनीसेफ की रिपोर्ट देखिए। पोलियो के सबसे ज्यादा नए मामले भारत में सामने आए हैं। इसमें भी यूपी पहले नंबर पर आया। पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिले इसमें अव्वल स्थान पाते हैं। ५ साल तक टाइम टू टाइम लगातार पोलियो की दवा पिलाई गई, लेकिन फिर भी पोलियो ज़िंदा रहा। ये हुई ना बात। (बद) नाम कमाने में हमने बाजी मार ली। खुश हो जाइए। पोलियो का वायरस ज़िंदा रखने वाले देश के नागरिक होने का आपको गौरव मिल गया है। कुछ और भी लोग हैं जो पोलियो की दवा को जादुई दवा समझते हैं। ऐसे राष्ट्रवादियों का तर्क है कि दवा पीने से बच्चा नपुंसक हो जाएगा। बच्चा अभी अपने पैरों पर ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ है कि इन राष्ट्रवादियों बच्चे को नपुंसक ओर पुंसक होने की चिंता सता रही है। लेकिन इन्हें ये डर नहीं सता रहा कि दवा नहीं पिलाई तो लकवा मार जाएगा। फिर क्या करोगे उस पुंसकता का। जब पूरी ज़िंदगी बच्चा या बच्ची ज़मीन पर घिसट-घिसटकर काटेगा। तब एक और रिकॉर्ड बनेगा। लकवापीड़ित देश के नागरिक होने का। तो बनाते रहिए रिकॉर्ड और मत पिलाइये पोलियो की दवा। क्योंकि लोकतंत्र का महापर्व आ गया है, और वो लोग दो बूंद लेकर आपके घर फिर से आने वाले हैं। लेकिन ज़रा सोचिए, इन महानुभावों से एक बार बस इतना पूछ लीजिए कि क्या उनका कोई बेटा-बेटी या रिश्तेदार ऐसा है। जिसने पोलियो की दवा नहीं पी है, या नहीं पिलाई है। फिर आपके गांव,ढ़ाणी और घर तक पोलियो की दवा क्यों नहीं पहुंची। अगर पहुंची भी तो आपने क्यों नहीं पिलाई। फिर अपनी अन्तरात्मा से पूछना कि पोलियो की दवा नहीं पिलाकर आपने कौन सा तीर मार लिया ? और क्या आपको तीसमार खां की पदवी मिली।
1 टिप्पणी:
2000 में ही पोलियो पर काबू पाने का लक्ष्य था ... 2009 हो गए ... बच्चे हर बार दवा पी रहे हें ... पर भारत से पोलियो के मिटने के कोई आसार नहीं दिखते।
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