शुक्रवार, 27 मार्च 2009
ताल से ताल मिलाते चलो....जनता को बेवकूफ बनाते चलो
लोकसभा चुनाव का महापर्व आ गया है, बड़े-बड़े शूरमा मैदान में उतरने के लिए दिमागी और जुबानी कसरत कर रहे हैं। जो जितने झूठ और शातिराना बयान बोलेगा उसके लोकतंत्र का देवता बनने के उतने ही ज्यादा अवसर होंगे। इन्द्र देव की सभा सरीखी संसद में पूरे ५४३ देवता ५ साल के लिए विराजमान होते हैं। इसलिए देवगण आजकल गाना गा रहे हैं, ताल से ताल मिलाते चलो....जनता को बेवकूफ बनाते चलो। अब इसके लिए भले ही अपने पुराने वादों को भुलाना पड़े या फिर सिद्धांतों से समझौता करना पड़े। यहां तक कि छाती ठोक-ठोक कर बोले गए अपने बोलों को वापस अपने मुंह में लेना पड़े। लोकतंत्र के महापर्व से पहले यही तो हो रहा है। लालू, मुलायम और पासवान हाथों में हाथ डालकर सोनू निगम का गाना गा रहे हैं....वो पहली बार जब हम मिले,,,हाथों में हाथ जब हमे चले....हो गया ये दिल दीवाना...होती है क्या सत्ता हमने जाना......। इधर अम्मा को फूटी आंखों नहीं सुहाने वाली पीएमके ने जयललिता की उंगली पकड़ ली। बच गए मनमोहन और सोनिया दोनों मिलकर इंग्लिश स्टाईल में टू-टू जा फोर, टू-टू जा थ्री, का गुणा भाग करके २७२ को जोड़ करने में जुटे हैं। आडवाणीजी आरएसएस...आरएसएस करते हुए वरूण वरूण कहने लगे हैं। आखिर इन्द्रसभा में एक देवता का नाम वरूण देव भी तो था। वो वरूण देव भी कम उम्र के थे....और ये वरूण भी २९ साल का नौजवान है। इन्द्रसभा की महारानी बनने के लिए मायावती हाथी पर चढ़कर हुंकार लगा रही है, लेकिन लाल लाल चिल्लाने वाले लाल झंडे के पीछे छुपकर ललचाई नज़रों से महापर्व के बाद होने वाली भेंट पर नज़र गड़ाए हुए हैं। लेकिन इन सब के बीच उन देवगणों की याद भी आती है, जो इस महापर्व में दिखाई नहीं देने वाले हैं। कोई बीमारी के कारण, तो कोई अपने रिटायरमेंट के कारण, किसी के आड़े बढ़ती उम्र आगे आ गई है तो किसी ने बेटे-बेटी यो पोते-पोती के लिए कुर्बानी दे दी है। मगर इसके बावजूद भी उनके दिल गैंदाफूल की तरह खिल रहे हैं, और यही कह रहे हैं ताल से ताल मिलाते चलो, लोकतंत्र का महापर्व है,...जनता को बेवकूफ बनाते चलो।
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3 टिप्पणियां:
ताल से ताल मिलाते चलो,
लोकतंत्र का महापर्व है,...
जनता को बेवकूफ बनाते चलो
बहुत खूब लिखा है आपने ...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
वास्तव में इन देश के ठेकेदारों का कोई ईमान धर्म नहीं है आज ये जिसको गालिया देते हैं कल उसे ही वापस कुर्सी की खातिर गले लगाने में जरा भी नहीं हिचकते। जन्ता को बेवकूफ ही बनते हैं ये लोग ।
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