गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

बेटे का नाम फेसबुक सिंह

प्रश्न- भाभी का क्या नाम है 
जवाब- गूगल कौर। 

प्रश्न- अरे, यह कैसा नाम है 
जवाब- एक सवाल करो तो हजार जवाब देती है। 

प्रश्न बेटे का क्या नाम है 
जवाब फेसबुक सिंह। 

प्रश्न ऐसा नाम क्यों रखा 
जवाब  कुछ कहो तो उसे पूरी सोसायटी में फैला देता है। 

प्रश्न और बेटी का नाम 
जवाब  ट्विटर कौर। तुम पूछो उससे पहले ही बता देता हूं, सारा दिन चहकती रहती है और पूरा मोहल्ला उसे फॉलो 

सोमवार, 16 जनवरी 2012

एक तेरी ही आरज़ू है..

http://www.jaatproud.blogspot.com/
एक तेरी ही आरज़ू है एक तेरा ही फसाना
हम चाहें भी तो कैसे तुझको पायें भुलाना..
ज़िंदगी की जज्दोजहद में ख्वाब बने हैं अफसाना
तुझे पाने की मेरी चाहत को जानता है ये ज़माना
एक तेरी ही आरजू है एक तेरा ही फसाना।

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

मैं न कहूंगा तुझसे अश्कों की बातें

मैं न कहूंगा तुझसे अश्कों की बातें
गुजर जाएं चाहे मेरी तन्हा ये रातें

मुमकिन नहीं फिर भी तब तक जिऊंगा
जीती हैं तेरी जब तक सांसों में यादें

मैं न कहूंगा तुझसे अश्कों की बातें...

बदली क्यों राहें तुमने कुछ न कहूंगा
क्यों फेरी निगाहें तुमने कुछ न कहूंगा

गईं छोड़ के मुझको जिस मोड़ पे तुम
क्यों परछाईयाँ देतीं मुझको फिर से आवाजें

मैं न कहूंगा तुझसे अश्कों की बातें...

यादें कभी जो मेरी तुझको सताएं
अनजाने में पलकें गीली कर जाएं

मुंह छुपा के न तकिये में रातें बिताना
तड़पती रहेंगी वरना सावन में रातें

मैं न कहूँगा तुझसे अश्कों की बातें...

मंगलवार, 18 मई 2010

मुझे अभी तो जीने दो

दो घूंट ख़ुशी के पीने दो!!
आसमान है बदला-बदला ,
काले बादल ने धूप को निगला,
बारिश की बूंदों में जरा,
मुझे अभी तो भीगने दो!
मुझे अभी तो जीने दो!!

खामोश सर्द रातों में,
दादी-मां की प्यारी बातों में,
सात समन्दर पार सही,
एक सपना तो संजोने दो!
मुझे अभी तो जीने दो!!

गर्म झुलसाती हवाओं में,
सूखे पेड़ की छांव में,
नए मंजर निकल रहे जो,
उसे घड़ी भर देखने दो!
मुझे अभी तो जीने दो!!

उसकी रातों से रात गई है,
खुशियों की हर बात गई है,
रिश्तों के जज्बात गए हैं,
रहने दो इन्सान मुझे,
कोई चाक जिगर तो सीने दो!
मुझे अभी तो जीने दो!!

बच्चों ने जीना सिखलाया,
बुजुर्गों ने आइना दिखलाया,
दिल की पुकार भी है कुछ,
जरा खुद से भी तो समझने दो !
मुझे अभी तो जीने दो,
दो घूंट ख़ुशी के पीने दो !!

खंजर मार कर मुस्कुरा रहे हैं वो

ये कैसा आलम है
ये कैसा मंज़र है
किसी अपनों ने ही वार कर मारा खंज़र है!
खंजर मार कर मुस्कुरा रहे हैं वो
अपने दिए ज़ख़्मों से हमें छलनी किए जा रहे हैं वो !
ये कैसी दी उन्होंने हमें अपनी नफ़रत
कि हम उनकी नफ़रत को अपना बना रहे हैं
और अपनी हालत पर खुद भी मुस्कुरा रहे हैं
अपनी तबाही के मंज़र का आनंद उठा रहे हैं
हमारी ऐसी हालत देखकर वो डरे जा रहे हैं
और वो हैं कि अपने डर को छुपाने की
नाकाम कोशिश किए जा रहे हैं।।

अब ना हम होंगे

मेरी कलम मेरे अल्फाजों की
ये आखिरी सौगात है
अब ना हम होंगे
ना हमारी बातें
ना होंगी हसरतें
ना ही चाहतें
ना रुसवाइयां होंगी
ना आंखें होंगी नम
ना तुम रूठोगे
ना हम मनाएंगे
ना रातें करवटे लेते बीतेंगी
ना सुबह हताशा भरी होगी
अब जो होगा
वो मन में होगा
मन के कोने की हर किवाड़ अब बंद
ना खटखटाना इसे
क्योंकि इसकी कुंडी हमसे नहीं खुलेगी
बस ये ले लो
आखिरी अल्फाज
आखिरी सौगात
आखिर जज्बात
के साथ अलविदा..
मेरे दोस्तों
अलविदा मेरी मुस्कुराहट
अलविदा हर चाहत की आहट
अलविदा.. अलविदा।

शुक्रवार, 7 मई 2010

‘मैं जिंदा हूं...

मैं ज़िंदा हूं यह मुश्तहर कीजिए,
मेरे क़ातिलों को ख़बर कीजिए’।
दिल ही तो है न संगो-ख़िश्त,
दर्द से भर न आए क्यों,
रोएंगे हम हजार बार,
कोई हमें सताए क्यों।