थोड़ा और जी लूं
प्रेम की गागर मिले तो थोड़ा और जी लूं
स्नेह का सागर मिले तो ग़म को भी पी लूं
स्नेह सूरज ने दिया भरपूर है
चांदनी चाहे भले ही दूर है
तारा इक सुख का दिखे तो चैन से जी लूं
प्रेम की गागर मिले तो थोड़ा और जी लूं
धैर्यमय धरती ने धारा श्रेय से
प्रेममय अंबर ने पाला प्रेय से
शून्य भी गर दे सहारा वैर को भी पी लूं
प्रेम की गागर मिले तो थोड़ा और जी लूं
स्नेह की सरिता चली सागर जहां
प्रेम से पूरित किनारा है कहां
शांतिमय आंचल मिले तो शौर्य से जी लूं
प्रेम की गागर मिले तो थोड़ा और जी लूं
4 टिप्पणियां:
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
nice
Beautiful poem !
aapne to mujhe bhi thoda aur jeene ki laasa de di...
aabhar 1
बहुत सुंदर
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
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